योगगुरु बाबा रामदेव हमेशा अपने बयानों से चर्चा में रहते हैं। इस बार उन्होंने शरबत को लेकर एक ऐसा बयान दिया है, जिससे सोशल मीडिया पर खूब बहस छिड़ गई है। उन्होंने कहा कि कुछ कंपनियाँ शरबत बेचकर मदरसे और मस्जिद बनवा रही हैं।
यह बात उन्होंने पतंजलि के गुलाब शरबत का प्रचार करते हुए कही थी। उन्होंने कहा कि पतंजलि की कमाई से गुरुकुल और भारतीय शिक्षा को बढ़ावा मिल रहा है, जबकि दूसरी तरफ कुछ शरबत कंपनियाँ ‘धार्मिक फंडिंग’ में लिप्त हैं।
शरबत को बताया ‘जिहाद’?
रामदेव यहीं नहीं रुके। उन्होंने कहा कि कुछ शरबत ‘शरबत जिहाद’ का हिस्सा हैं और इनसे बचना ज़रूरी है। इसके बाद उन्होंने कुछ ड्रिंक्स की तुलना टॉयलेट क्लीनर से भी कर दी। हालाँकि, उन्होंने किसी ब्रांड का नाम नहीं लिया लेकिन उनके इशारे साफ तौर पर रूह अफजा की तरफ थे।
रूह अफजा की कहानी क्या है?
रूह अफजा कोई नया प्रोडक्ट नहीं है। इसे 1906 में हकीम हाफिज अब्दुल मजीद ने तैयार किया था। गर्मियों में शरीर को ठंडक देने वाला यह शरबत भारत और पाकिस्तान दोनों में लोकप्रिय है।
कहां जाती है रूह अफजा की कमाई?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, हमदर्द लैबोरेट्रीज, जो रूह अफजा बनाती है, सालाना लगभग 70 मिलियन डॉलर का कारोबार करती है। इसमें से बड़ा हिस्सा धार्मिक और समाज सेवा के कार्यों में लगाया जाता है।
क्या बाबा रामदेव सही कह रहे हैं?
रामदेव के इस बयान पर लोगों की राय बंटी हुई है। कुछ इसे ज़रूरी सवाल मानते हैं, तो कुछ इसे धार्मिक ध्रुवीकरण का प्रयास बताते हैं। लेकिन इतना तो तय है कि अब रूह अफजा पर बहस तेज़ हो गई है।
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